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Friday, August 6, 2010

मेरे ख्बाब सुनहरे हो नहीं सकते 
क्योकिं आप मेरे हो नहीं सकते 
वो और होगें जिन्होंने पकडा तेरी जुल्फों को 
हम बावफा है सपेरे हो नहीं सकते 
दिल में दर्द, आँखों में नमी होंटोपे आहे 
बदनसीबी के बादल इससे घनेरे हो नहीं सकते 
ये कौन सा पेंच है जिंदगी का "राजा"
वो बेवफा भी नहीं और मेरे हो भी नहीं सकते

2 comments:

  1. बहुत खूब मेरे दोस्त ....सुन्दर रचना .!!! शब्दों के इस सुहाने सफ़र में आज से हम भी आपके साथ है इस उम्मीद से की सफ़र कुछ आसान हो जाए ...फिलहाल इस रचना के लिए बधाई ../ कुछ वर्तनी अशुद्धि है ...ठीक कर ले ..रचना की खूबसूरती कम करती है ...

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  2. धन्यवाद "लोगो" के लिए

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