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Tuesday, August 31, 2010

बेटियां

दिल डरता है दरवाजे पर खड़ी बेटी को देख कर 
हर बार मर जाता हूं बड़ी बेटी को देख कर 
उसका भी आशियां तोड़ा है दहेज़ के पत्थरो ने 
दिल रोता है किस्मत से लड़ी बेटी को देख कर 
कैसे गले लगाउं मौत को, ख्वाहिश है 
मरू सोलह श्रंगार से जड़ी बेटी को देखकर 
क्या घर मै उसे दूंगा क्या वर मै उसे दूंगा 
ऐसा सोचता हूं  लंगड़ी बेटी को देख कर

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