दिल डरता है दरवाजे पर खड़ी बेटी को देख कर
हर बार मर जाता हूं बड़ी बेटी को देख कर
उसका भी आशियां तोड़ा है दहेज़ के पत्थरो ने
दिल रोता है किस्मत से लड़ी बेटी को देख कर
कैसे गले लगाउं मौत को, ख्वाहिश है
मरू सोलह श्रंगार से जड़ी बेटी को देखकर
क्या घर मै उसे दूंगा क्या वर मै उसे दूंगा
ऐसा सोचता हूं लंगड़ी बेटी को देख कर
marmik rachna kai saval liye, badhai
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना है।
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